अलिफ लैला की प्रेम कहानी-85
सुंदरी खुदादाद से यह
सब कह ही
रही थी कि
वह राक्षस जैसा
मनुष्य आ पहुँचा।
वह पर्वताकार लगता
था और बहुत
ऊँचे तुरकी घोड़े
पर बैठा था।
उस की तलवार
इतनी भारी थी
कि उस के
अलावा किसी और
से उठ ही
नहीं सकती थी
और उस की
गदा कई मन
की थी। खुदादाद
उसे देख कर
डर गया और
ईश्वर से प्रार्थना
करने लगा कि
इस राक्षस से
बचा। हब्शी ने
उसे तलवार निकाले
देखा किंतु उसे
तुच्छ जान कर
अपने हथियार न
सँभाले बल्कि चाहता था
कि वैसे ही
उसे हाथों से
पकड़ ले। यह
देख कर खुदादाद
ने घोड़ा बढ़ाया
और उस के
घुटने पर एक
तलवार की चोट
की। घाव खा
कर हब्शी ने
घोर गर्जन किया
और अपनी भारी
तलवार निकाल कर
खुदादाद पर चलाई।
खुदादाद पैंतरा बदल कर
बच गया वरना
वहीं खीरे की
तरह कट जाता।
अब खुदादाद ने
अपनी गदा इस
कौशल और ऐसे
कोण से चलाई
कि हब्शी का
हाथ ही कट
कर गिर गया
और वह घोड़े
से नीचे आ
रहा। खुदादाद झपट
कर पहुँचा और
अपनी तलवार से
हब्शी का सिर
उस के शरीर
से अलग कर
दिया।
वह सुंदरी खिड़की से
यह युद्ध देख
रही थी और
भगवान से प्रार्थना
कर रही थी
कि खुदादाद को
विजयी बनाए। हब्शी
की मृत्यु देख
कर खुशी से
फूली न समाई
और पुकार कर
कहने लगी, भगवान
की बड़ी दया
हुई। अब तुम
इसकी कमर से
चाबियों का गुच्छा
लो और ताला
खोल कर मेरे
पास आओ।
वह विशाल हब्शी किले
की सारी कुंजियाँ
अपने पास ही
रखा करता था।
खुदादाद उस के
पास आया। वह
सुंदरी उस के
पैरों पर गिरने
को उद्यत हुई
किंतु खुदादाद ने
उसे बीच ही
में उठा लिया।
सुंदरी उस की
प्रशंसा करने लगी
और बोली कि
मैं ने तुम्हारे
जैसा वीर पुरुष
और कोई नहीं
देखा। खुदादाद ने
उसे अभी तक
दूर से देखा
था, पास से
देखा तो पहले
की अपेक्षा वह
कहीं अधिक सुंदर
दिखाई दी। वे
दोनों बैठ कर
बातें करने लगे।
वे दोनों बातें कर
ही रहे थे
कि एक ओर
से चिल्लाने का
शब्द सुनाई दिया।
खुदादाद ने पूछा,
यह आवाज कहाँ
से आ रही
है और उस
का क्या मतलब
है? सुंदरी ने
कमरे के एक
ओर बने हुए
दरवाजे की और
उँगली उठाई, यानी
इशारे से बताया
कि आवाज इस
दरवाजे के पीछे
से आ रही
है। और पूछने
पर वह बोली,
यहाँ एक बड़ा-सा कमरा
है। उस हब्शी
ने यहाँ बहुत-से मनुष्य
कैद कर रखे
हैं। नए लोगों
को ला कर
वह यहीं रखता
था और प्रतिदिन
वहाँ जा कर
एक मनुष्य को
चुन कर बाहर
लाता था और
भून कर खा
जाता था।